बच्चों ! आज हम ऐसी कहानी के बारे में (अभिमानी कछुआ very short stories with moral in hindi) जानेंगे जिसे हम अगर अपने जीवन में उतरेंगे तो हमारा व्यक्तित्व निखर सकता है क्योंकि आजकल लाइफ में अगर आगे बढ़ाना हो तो बहुत ही जरूरी हो जाता है कि हम कैसे लोगों के साथ उठते बैठते हैं, कैसे लोगों के साथ रहते हैं क्योंकि हर एक व्यक्ति का असर हमारे ऊपर लंबे समय के बाद आ ही जाता है । कहानी कछुए की है कि कछुए के ऊपर आखिर यह पत्थर जैसा कठोर क्यों है चलिए शुरू करते हैं कहानी-

एक बड़ा बहुत बड़ा जंगल था। जंगल के बीच में बहुत ही बड़ा तालाब था। उस तालाब में छोटा सा घर बनाकर एक कछुआ रहता था। कछुए (tortoise) को अपना घर और तालाब बहुत ही पसंद था ।यहां तक की रात दिन कछुआ अपने घर में और तालाब में ही रहता था।
दिन-रात बस वहीं पर रहता था और कुछ पल के लिए भी कहीं निकलता भी नहीं था ,क्योंकि तालाब छोड़ने का ही कछुए को अच्छा नहीं लगता था।
इंद्रदेव का निमंत्रण
एक बार बरसात के देव ने जंगल में सभी प्राणियों के लिए सोचा कि सभी को खाना खिलाते हैं। बरसात के देव ने सभी प्राणियों को निमंत्रित किया और कछुए को भी आमंत्रित किया। सभी प्राणी बहुत ही खुश थे कि स्वयं भगवान देव ने हमें अपने यहां भोजन पर बुलाया है।
अब ऐसा हुआ कि सभी प्राणी भोजन के दिन की राह देखने लगे की कब भोजन किया जाए आखिरकार भोजन के दिन का समय आ ही गया।
भोजन के दिन
सभी प्राणी अच्छे-अच्छे कपड़े पहन कर और गहने पहनकर तैयार हो गए। सभी लोग भोजन के लिए आतुर थे और सभी को अचानक से ध्यान आया कि कछुआ तो नहीं आया है कुछ प्राणी ने तालाब के पास जाने का भी सोचा और वहां गए तो देखा कि कछुआ तालाब के पास आराम से टहल रहा है।
प्राणियों ने जब कछुए को पूछा कि तुम भोजन में क्यों नहीं आए ?अगर तुम्हें देर हो गई हो तो चलो अभी तैयार हो जाओ हमारे साथ चलो। क्योंकि हम तुम्हें लेने आए हैं। कछुआ बोलता है तो उसका जवाब सुनकर सभी को आश्चर्य होता है क्योंकि कछुआ बोला कि, “मैं अपना घर छोड़कर भोजन के लिए कैसे आऊं? मैं अपने घर को बहुत प्यार करता हूं। थोड़ी देर के लिए भी मैं अपने घर को नहीं छोड़ सकता। आप सब मेरी चिंता ना करें और यहां से जाएं ।”
सभी प्राणियों ने कछुए को मनाने का बहुत ही प्रयत्न किया मगर अपने प्रयत्न में कोई सफल नहीं हुआ। सभी थक हारकर कछुए को छोड़कर खाने के लिए चले गए।
भोजन का आनंद
इंद्रदेव ने तो मेहमानों का बहुत ही प्रेम से स्वागत किया। उन्होंने देखा कि कछुआ नहीं आया है और जब प्राणियों को पूछा गया तो सब ने ही कहा कि कछुआ अपने घर को नहीं छोड़ना चाहता। इंद्रदेव को यह सुन कर बहुत ही गुस्सा आ गया।
गुस्से में बोलते हैं कछुए ने मेरे निमंत्रण को ठुकराया हे ।इतने में ही तो देव बहुत ही गुस्सा हो गए और चिल्लाकर बोले,” आखिर कछुआ अपने आप को क्या समझता है? अभी मैं जाता हूं वहां ।”
पर थोड़ी देर के बाद देव शांत हुए और उन्होंने तय किया कि वह खुद जाकर कछुए को मनाएंगे। देव कछुए के पास जाते हैं और पूछते हैं कि तुम भोजन पर क्यों नहीं आए सभी प्राणी तो आ गए हैं। तो तुम मेरे साथ चलो तुम्हें भी बहुत ही अच्छा लगेगा सबसे मिलकर खुश होंगे।
कछुआ बोलता है,” में अपने घर से बहुत ही प्यार करता हूं। और मैं अपने घर को एक क्षण के लिए भी नहीं छोड़ सकता ।आप अपने यहां भोजन में आने का मुझे मत कहिए क्योंकि उसमें मुझे रस ही नहीं है।”
इंद्रदेव का श्राप
कछुए का ऐसा कठोर वचन सुनकर देव बहुत ही गुस्से में होते हैं और कछुए को श्राप देते हैं कि जो घर तुझे बहुत ही पसंद है ।वह आज से तेरे शरीर पर ही चिपक जाएंगा।तेरी मर्जी होगी तो भी तू अपने घर को छोड़ नहीं सकता जहां जाएगा वहां तेरा घर तेरे साथ ही चलेगा ।
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बस उस दिन से आज तक कछुआ अपनी पीठ पर घर लेकर ही घूमता फिरता है।
(very short stories with moral in hindi conclusion )
सीख: हमें अपनी कोई भी चीज को इतना प्यार नहीं करना चाहिए कि अनजाने में ही हम किसी का अपमान कर बैठे और हमारा नुकसान हम खुद कर बैठे।