2 small hindi stories : आज हम एक नई कहानी बताने जा रहे हैं जिसमें ब्राह्मण और नागदेव के बीच में होने वाली बातचीत दी गई है जिससे हमें काफी कुछ सीखने को मिलता है। कहानी शुरू होती है जिसमें एक छोटा सा गांव है। गांव में वारीदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता है ।इस ब्राह्मण के पास खेडने लायक थोड़ी जमीन भी थी ।जिसमें से अनाज बोकर वह अपना गुजारना चलता था। बहुत ही कम उपज के कारण वह कुछ बचा भी नहीं सकता था और खुद के खाने लायक भी कभी ही मिलता था।
ब्राहमण की आस्था
एक दिन की बात है बहुत ही गर्मी का दिन था और गर्मी से थका हुआ वारीदत्त ब्राह्मण ज्यादा काम नहीं कर शकता था तो जमीन पर बैठा हुआ था ।तभी उसकी नजर पेड़ के नीचे बने हुए माटी के ढेर पर गई तो देखा कि यह तो नाग का घर है और नाग तो जमीन के देव है।
ब्राह्मण अब सोचने लगा कि शायद नाग देवता की अच्छे से पूजा नहीं हो रही है इसीलिए वह गुस्सा है और मेरी जमीन में कुछ भी उपज नहीं होने दे रहे हैं। तभी ब्राह्मण एक कटोरे में दूध लाकर नाग देवता के सामने रखता है और प्रार्थना करता है ,”भूमि के देव आप यहीं पर रहते हैं मुझे पता नहीं था, मैंने आपको कभी खाना भी नहीं खिलाया और दूध भी नहीं पिलाया, मुझे माफ करिए और यह दूध का कटोरा पीजिए।
सोने का सिक्का
दूसरे ही दिन जब ब्राह्मण नाग के माटी के ढेर के पास गया तो उसने देखा कि जो दूध रखा हुआ था वह कटोरा खाली था और उसमें एक सोने का सिक्का था। सोने का सिक्का देखकर ब्राह्मण खुश हो गया और उसको लेकर घर चला गया ।
बाद में तो रोज ब्राह्मण दूध का कटोरा रखने लगा और एक-एक सोने का सिक्का उसे मिलता रहा। एक दिन की बात है ब्राह्मण को कोई काम से शहर जाना पड़ा तो उसने अपने पुत्र को नाग को दूध पिलाने के लिए कह दिया।
पुत्र की लालच
ब्राह्मण का पुत्र नाग के घर के पास गया और कटोरा में सोने का सिक्का देखा उसने सोचा कि यह मिट्टी के देर में ज्यादा ही सोना होना चाहिए रोज वहां जाने से अच्छा है कि एक ही बार में सब निकले।
ऐसी लालच लेकर ब्राह्मण का लड़का लकड़ी से नाग के ऊपर प्रहार करने लगा। नाग भी उससे बचकर निकल सका। गुस्से में आकर नागने बच्चे को डंक मार दीया और बच्चा मर गया।
नाग की बात
ब्राह्मण ने अपने बेटे का अग्नि संस्कार किया और दूसरे ही दिन वारीदत्त नाग के पास गया और रोज की तरह नागदेव को दूध का कटोरा दे दिया।
नागदेव ने उसको कहा तेरे पुत्र को तो मैं डश लिया तो वह मर गया है तो भी तो मुझे दूध देने आए हो। यह तो लालच के कारण ही ऐसा कर रहे हो अपने पुत्र को खोने के बाद भी तो मुझे दूध देने आए हो तेरा पुत्र युवान था और मूर्ख था वह मुझे मारने आया था और मुझे अपना बचाव करने के लिए ही उसको मारना पड़ा।
तू अपने बेटे से भी ज्यादा लालची है मैं सिर्फ तुझे आखिर में यह हीरा दे देता हूं अभी कभी तुम यहां मत आना ब्राह्मण तो अपने बेटे को भी खो देता है और जो रोज की भेंट मिल रही थी सोने का सिक्का वह भी खो देता है और यही सोचकर वह वापस चला जाता है ।
सीख :
यह कहानी से हमें सीख मिलती है कि हमें ज्यादा लालच नहीं करनी चाहिए यदि हमारे पास थोड़ा कम है तो उसी में हमें खुश होकर अपनी जीवन यात्रा बितानी चाहिए अगर हम ज्यादा लालच करेंगे तो यह ब्राहमण की तराई हमारा हाल हो सकता हे
मुझे आजाद करो
छोटी सी प्यारी सी कहानी है जिसमें छोटे बच्चों ने कैसे अपनी युक्ति से काम निकालना जानते हैं वही यह कहानी में बताया गया है चलिए शुरू करते हैं कहानी।
गोपि का पिंजरा
एक छोटा सा गांव था। गांव में गोपी नाम का छोटा सा बच्चा रहता था जो बहुत ही सुंदर था। गोपी के पास एक सुंदर सा पक्षी था जिसका नाम मीनू था। मीनू को लोगों की नकल करना बहुत ही पसंद था ।
मीनू ऐसा था कि वह इंसान की तरह बोलना और सिटी भी बजाना जानता था ।गोपी मीनू को बहुत ही प्यार करता था और लाड़ भी करता था। वह अपने घर में मीनू को पिंजरे में बंद करके रखता था।
गोपी ने तो मीनू को पाला था और पिंजरे में ही रखता था गोपी के पड़ोस में रहती रमा भी मीनू को बहुत ही प्यार करती थी मगर मीनू को पिंजरे में बंद देखकर उसको बहुत ही दुख होता था।
रमा की तरकीब
एक बार तो रमाने गोपी को यह मीनू को पिंजरे से छोड़ने का भी कहा ।रमा ने गोपी को पूछा तुम मीनू को पिंजरे में क्यों रखते हो उसको छोड़ दो उसे भी आकाश में उड़ने का हक है ।आकाश में उड़कर मीनू खुश हो जाएगा ।
गोपी गुस्से में आ गया और कहता है कि मुझे लगता है कि मीनू को पिंजरे में ही खुशी मिलती है क्योंकि वह एक जगह पर बैठकर सब कुछ देख सकता है ऐसा कहकर गोपी ने रमा की बात टाल दी ।
रमा की युक्ति
आखिरकार एक दिन रमा ने मीनू को पिंजरे से छुड़ाने की तरकीब सोच ली। जब गोपी घर नहीं था तो वह पिंजरे के पास गई और बोलने लगी,” पिंजरा खोलो, मुझे आजाद करो “।बार-बार रमा यही वाक्य बोलती रही ,”पिंजरा खोलो मुझे आजाद करो “।
उसे पता था कि मीनू भी उसकी बात दोहराएगा मगर यहां पर तो उल्टा ही हो गया मीनू ने कुछ बोला ही नहीं। रमा ने भी हार नहीं मानी और बोलते ही रही। उसने सोचा कि कभी ना कभी तो मीनू बोलेगा ही।
यह सोचकर रमाने कई दोस्तों को भी वहां पर बुलाया ताकि किसी न किसी से तो मीनू यह बोलेगा कि,” मुझे आजाद करो “।
रमा के दोस्त
सभी पिंजरे के नजदीक आ गए और बोलते रहे,” पिंजरा खोलो मुझे आजाद करो “।मगर यह है क्या जो मीनू सब की नकल करने में माहिर थी। अब वह एक शब्द भी नहीं बोल रही थी सबको बहुत ही दुख होता है कि मीनू ऐसा क्यों नहीं बोल रही है थक हार कर सब अपने घर चले गए ।
एक दिन की बात है गोपी पिंजरे के पास खड़ा था वह अकेला ही था उसे देखकर अचानक ही मीनू बोलने लगा,” पिंजरा खोलो मुझे आजाद करो”। मगर गोपीने इस बात पर ध्यान नहीं दिया मगर अब तो मीनू बार-बार कहने लगा “पिंजरा खोलो मुझे आजाद करो”
पूरे दिन बोलने के बाद जब शाम हुई तो गोपी को गुस्सा आने लगा और गुस्से में ही मीनू को आजाद करने के लिए पिंजरा खोल दिया। तुरंत ही मीनू वहां से उड़ गई। रमा और उसके दोस्तों ने पिंजरा खुला देखा और मीनू को उड़ते हुए देखा तो सब की खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि आखिरकार सब की मेहनत रंग लाई।
सिख :
यह कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी को भी परेशान नहीं करना चाहिए जहां जिसकी जगह है वही वह खुश रहता है कोई पक्षी हो या कोई भी पशु हो उसे बांधकर रखने में खुश नहीं रहते वह आजादी में ही खुश रह सकते हैं तो हमें भी अगर हमारे घर कोई पालतू प्राणी हो तो उसको सिर्फ बांधकर या पिंजरे में रखकर नहीं रखना चाहिए ।उसे भी आजाद करना चाहिए वरना वह भी आपके सामने कभी ना कभी बोलेगा मुझे आजाद करो